भारत ने 2G और 3G जैसी टेक्नोलॉजी को अपनाने में भले ही समय लगा दिया हो, लेकिन 4 जी और 5 जी में यह तेजी से आगे बढ़ रहा है। देश की टेलीकॉम कंपनियों ने जहां 4 जी को अपनाना में 3-5 साल लगाई वहीं 5 जी को अपनाने में इससे भी कम समय लग सकता है। मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज की रिपोर्ट के मुताबिक, देशभर में स्पेक्ट्रम, साइट्स और फाइबर सहित 5G नेटवर्क के लिए कुल 1.3 से 2.3 लाख करोड़ रुपए खर्च करना होगा।
5G मोबाइल नेटवर्क में भारत की स्थिति
विकसित देशों के मुकाबले भारत में 2G और 3G मोबाइल नेटवर्क की इंट्री 8 से 10 वर्षों बाद हुआ था। जबकि 4G मोबाइल नेटवर्क भी भारत में 3-5 साल बाद 2014-16 में आया था। अब 5G मोबाइल नेटवर्क की लॉन्चिंग को लेकर भारत में दुनिया की बड़ी कंपनियां 5G ट्रायल के लिए सरकार के साथ लगातार संपर्क कर रही हैं।
इस दिशा में रिलायंस इंडस्ट्रीज के ओनर मुकेश अंबानी कंपनी की जुलाई में हुए सालाना बैठक में कहा था कि जियो ने 5G तकनीक को तैयार और विकसित कर लिया है। यह 5G स्पेक्ट्रम उपलब्ध होते ही ट्रायल के लिए तैयार हो जाएगा और अगले साल फील्ड डेवलपमेंट के लिए तैयार हो सकता है।
A सर्कल और मेट्रो शहरों के लिए खर्च
मोतीलाल ओसवाल फाइनेंशियल सर्विसेज द्वारा जारी रिपोर्ट में अनुमान जताया गया है कि A सर्कल और मेट्रो शहरों के लिए 78,800 करोड़ रुपए से लेकर 1.3 लाख करोड़ रुपए तक का खर्च आ सकता है। जबकि केवल मुंबई में 5G के लिए 10 हजार करोड़ रुपए के निवेश की आवश्यकता होगी।
दूसरी ओर ट्राई ने 100 मेगा हर्ट्ज मिड बैंड स्पेक्ट्रम के लिए 8400 करोड़ रुपए प्राइस रिजर्व किया है। रिपोर्ट के मुताबिक, 9 हजार साइट्स के लिए 20 लाख प्रति साइट की कीमत पर बढ़ गई, तो लागत 1800 करोड़ रुपए और बढ़ जाएगी। इससे कुल लागत को 10 हजार करोड़ रुपए हो जाएगी। इसी प्रकार दिल्ली में भी 5G रोलआउट के लिए 8,700 करोड़ रुपए की लागत अनुमानित है। जबकि सरकार ने 100 मेगा हर्ट्ज मिड बैंड स्पेक्ट्रम के लिए बेस प्राइस 6900 करोड़ रुपए रिजर्व किया है।
रिलायंस जियो और भारती एयरटेल की स्थिति मजबूत
रिपोर्ट के मुताबिक, रिलायंस जियो और भारती एयरटेल 5G में निवेश के लिए सक्षम हैं। क्योंकि वे अपने टैरिफ में बढ़ोतरी और फ्री कैश फ्लो (FCF) में बढ़ोतरी कर सकती हैं। जबकि वी (वोडाफोन आइडिया लिमिटेड) के लिए कर्ज, कम एबीटा और नकदी की किल्लत से मुश्किल होगी।
मेट्रो और A सर्कल में मुंबई, दिल्ली, कोलकाता, महाराष्ट्र, तमिलनाडु और चेन्नई, आंध्रा प्रदेश, कर्नाटक और गुजरात शामिल हैं। ब्रोकरेज हाउस ने देशभर के 6 लाख साइट्स और प्रति साइट 15 लाख रुपए खर्च के लिए कुल लागत 90 हजार करोड़ रुपए आंका है।
फाइबर पर कुल खर्च
रिपोर्ट में कहा गया है कि, अगर साइट्स केवल मेट्रो और A सर्कल के लिए आवश्यक हैं, तो साइट्स की कुल आवश्यकता घटकर 1 लाख हो जानी चाहिए। क्योंकि इन सर्कल को हाई डेंसिटी की जरूरत होती है। देशभर के लिए फाइबर की आवश्यकता 25 लाख किमी और फाइबर लेआउट के लिेए प्रति किमी लागत एक लाख रुपए माना जाए, तो फाइबर के लिए कुल खर्च 25 हजार करोड़ रुपए अनुमानित है।
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